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Thursday 6 December 2012


अमर कर्मयोगी (श्री राजीव दीक्षीत)जयंती एवं पुण्य तिथि ३० नवम्बर पर


जन्म -मृत्यु एक तिथि को ही होना क्या विचित्र संयोग है.श्री राधे श्याम जी एवं श्रीमती मिथलेश जी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव दीक्षित जी के जीवन का ऐसा ही संयोग रहा.पुत्र के जन्म पर परिवार में जिस दिन  खुशियाँ मनाई जाती रही होंगी,वही दिन इतनी  छोटी सी आयु में ही  उनकी पुण्य तिथि बन जाएगा , ऐसा कभी किसी ने विचार भी नहीं किया होगा. 30  नवम्बर 1967 को अलीगढ में अतरोली तहसील स्थित ग्राम नाह में जन्मे राजीव जी पर  परिवार के संस्कारों का पूर्ण प्रभाव था.स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्मे राजीव जी   महान क्रांतिकारी भगत सिंह ,उधम सिंह जी ,आज़ाद,बिस्मिल  तथा अन्य क्रांतिकारियों के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे.महात्मा गांधी की स्वदेशी विचारधारा तथा ग्रामीण उत्थान की अवधारणा उनके अंतरतम को स्पर्श करती थी.
ग्रामीण पाठशाला में प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त कर फिरोजाबाद से १२ वी की परीक्षा में सफलता प्राप्त करते हुए राजीव जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी टेक तथा I I T कानपुर से एम् टेक का  सम्मान   प्राप्त कर ये  सुनिश्चित किया कि उच्च शिक्षा में भी ग्रामीण परिवेश के मेधावी विद्यार्थी भी किसी भी शिखर  पर पहुँचने  में सफल हो  सकते हैं,और मेधा किसी परिवेश विशेष की मोहताज नहीं होती .अपने पिता के स्वप्नों को साकार करने के लिए आपने अपनी शिक्षा-दीक्षा के अनुरूप C.S.I.R. तथा फ़्रांस टेलीकम्युनिकेशन सेंटर में कार्य किया.देश के महान राष्ट्रपति तथा मिसाईल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध वैज्ञानिक अब्दुल कलाम जी  के साथ कार्य करते हुए देश सेवा वैज्ञानिक के रूप में भी की परन्तु उन्होंने जनता को जागरूक कर देश की समस्याओं को दूर करने तथा स्वदेशी की अलख जगाने का निश्चय किया. ये जूनून उनके ह्रदय में  अत्यधिक प्रबल था .
1984  में  भोपाल गैस कांड का दारुण दुःख जनता को झेलना पड़ा और सरकार द्वारा दोषियों के विरुद्ध कड़ी न तो  ठोस  कार्यवाही  की गई  और न ही  पीड़ितों के प्रति कोई विशेष संवेदनशील व्यवहार रहा ,इस घटना से उनका आक्रोश बहुत बढ़ा और  राजीव जी ने प्राणपण से पीड़ितों की सेवा के लिए कार्य किया..
गांधी जी की कर्मभूमि वर्धा में रहते हुए आपने  इतिहास के प्रकांड पंडित तथा भारतीय सभ्यता और संस्कृति के यथार्थ से देश दुनिया को परिचित करने का निश्चय लिए हुए  धर्मपाल जी के सानिध्य में बहुत कार्य किया  और इसी कार्य को अपना मिशन बनाया.
. सादगी की प्रतिमूर्ति,तथा अपरिग्रही राजीव जी   मात्र दो जोड़ी खादी वस्त्र में ही अपने मिशन स्वदेशी का प्रचार प्रसार तथा भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रति देश की जनता को परिचित कराने के लिए भ्रमण करते रहे .स्वावलंबन के समर्थक वह अपने समस्त कार्य स्वयं करते थे. होमियोपैथी के चिकित्सक  होने के साथ-साथ उनको स्वदेशी पद्धति  आयुर्वेद का  भी ज्ञान था.
भाई राजीव जी ने मात्र 43  वर्ष की आयु में ही बहुत से ऐसे कार्य किये  जो उनको सबका चहेता बनाते हैं, इनमें प्रमुख हैं
1991 में डंकल प्रस्तावों के खिलाफ घूम घूम कर जन जाग्रति की और रेलियाँ निकाली |
1991-92 में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कंपनी के शराब कारखानों को बंद करवाने में भूमिका निभाई | 1995-96 में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चा और संघर्ष किया जहाँ भयंकर लाठीचार्ज में काफी चोटें आई | टिहरी पुलिस ने तो राजीव भाई को मारने की योजना भी बना ली थी| 1987 में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रसिद्ध गाँधीवादी, इतिहासकार श्री धर्मपाल जी के सानिध्य में अंग्रेजो के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके देश को जागृत करने का काम किया | उन्होंने भारतीयों के सहस्त्र वर्षों की   मानसिक, सामाजिक , आर्थिक व राजनीतिक गुलामी के कारण भारतीयों में व्याप्त आत्महीनता की भावना को दूर करने और उनमें दोबारा आत्म-गौरव की जागृति  के लिए , सनातन भारतीय संस्कृति को विदेशी दुष्प्रभाव व देश को विदेशी कंपनियों की लूट से बचाने के लिए ”स्वदेशी बचाओ आन्दोलन” को प्रारंभ किया . साथ ही उन्होंने देश में स्वदेशी जनरल स्टोरों की श्रंखला खोलने पर भी जोर दिया जहाँ केवल भारतीय वस्तुओं की ही बिक्री की जाएगी . देश में सबसे पहली स्वदेशी-विदेशी सूची की सूची तैयार करके स्वदेशी अपनाने पर बल दिया. वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने जनता को स्विस बैंकों मे जमा भारतीय काले धन के बारे में बताया और उसे वापस लाने का मार्ग भी बताया . उन्होंने पेप्सी, कोका-कोला,  कोलगेट-पामोलिव, आई.टी.सी. , हिंदुस्तान लीवर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पोल खोली. इनके विरुद्ध  उन्होंने  हाई-कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस भी लड़े और  इस लड़ाई में उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा. स्विस बैंक में जमा काले-धन को वापस लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने के लिए उन्होंने 40,00,000 लोगों के हस्ताक्षर भी एकत्रित किये . उन्होंने जनवरी 2009 में “भारत स्वाभिमान न्यास” कि स्थापना कि तथा इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा राष्ठ्रीय सचिव बने | स्वाभिमान ट्रस्ट विश्वविख्यात योग गुरू बाबा रामदेव की योग क्रांति को देश के सभी 638365 गांवों तक पहुंचाने तथा स्वस्थ, समर्थ एवं संस्कारवान भारत के निर्माण के लक्ष्यों को लेकर स्थापित  एक ट्रस्ट है। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार, गरीबी, भूख, अपराध, शोषण मुक्त भारत का निर्माण कराना है उन्होंने ही बताया की हमारे द्वारा खून पसीने की कमी से दिए गए टेक्सों का 80 % हिस्सा तो नेताओं और नौकरशाही के ऊपर ही खर्च हो जाता है और केवल 20 % हिस्सा ही विकास कार्यों में लगता है . यही व्यवस्था अंग्रेज राज के समय से चली आ रही थी, जो अभी तक चल रही है .सबसे दुखद तो ये है कि अंग्रेज तो आये ही लूटने थे परन्तु अब हमको वो लूट रहे हैं,जो हमारे प्रतिनिधि बनकर भाग्य विधाता बने हैं. भारत को विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनाने को संकल्पित ‘भारत-स्वाभिमान’ के उद्देश्यों को प्रचारित-प्रसारित करते हुए भ्रमण के समय आप को हृदयाघात हुआ और आपने अपने कर्मक्षेत्र में प्राणों का उत्सर्ग कर भारत मां को आर्थिक गुलामी से मुक्त करवाने हेतु अपना बलिदान कर दिया।   काल के क्रूर पंजो से  उन्हें छीन लिया.जिसकी आवश्यकता भूलोक पर है लगता है ईश्वर भी उन्ही को अधिक प्रेम करते हैं.
अपनी     मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर तथा उसको सम्मान प्रदान कर जितनी उपलब्धियों से हम लाभान्वित हो सकते  हैं उतना विदेशी भाषाओँ के आधार पर नहीं.स्वदेशी की महत्ता को उन्होंने विविध दृष्टान्तों से समझाया  , इस संदर्भ में उन्होंने भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम तथा अन्य वैज्ञानिकों के   भी उदाहरण दिए  और कहा,.……………. उच्च तकनीकी क्षेत्र जैसे उपग्रह निर्माण, जिसे उच्च तकनीक कहा जाता जो बहुत कठिन एवं क्लिष्ट तकनीक होती है, उसमें आज तक कोई विदेशी कंपनी इस देश में नहीं आई. भारत जिसने  1995 में  एक आर्यभट्ट नामक  उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा एवं उसके उपरांत हमारे अनेकों उपग्रह अंतरिक्ष में गए है . अब तो हम दूसरे देशों के उपग्रह भी अंतरिक्ष में छोड़ने लगे है इतनी तकनीकी का विकास इस देश में हुआ है यह संपूर्ण स्वदेशी पद्दति से हुआ है, स्वदेशी के सिद्धांत पर हुआ है एवं स्वदेशी आंदोलन की भावना के आधार पर हुआ है . इसमें जिन वैज्ञानिकों ने कार्य किया है वह स्वदेशी, जिस तकनीकी का उपयोग किया गया है वह स्वदेशी, जो कच्चा माल उपयोग किया गया है वह स्वदेशी, इसमें जो तकनीक एवं कर्मकार लोगों का सहयोग प्राप्त हुआ वह सब स्वदेशी, इनको अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने हेतु जो कार्य हुआ है वह भी हमारी प्रयोगशालाएं स्वदेशी इनके नियंत्रण का कार्य होता है वह प्रयोगशालाएं भी स्वदेशी तो यह उपग्रह निर्माण एवं प्रक्षेपण का क्षेत्र स्वदेशी के सिद्धांत पर आधारित है .एक और उदाहरण है ” प्रक्षेपास्त्रों के निर्माण ” (मिसाइलों को बनाने) का क्षेत्र आज से तीस वर्ष पूर्व तक हम प्रक्षेपास्त्रों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर थे या तो रूस के प्रक्षेपास्त्र हमे मिले अथवा अमेरिका हमको दे किंतु पिछले तीस वर्षों में भारत के वैज्ञानिकों ने विशेष कर ” रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ” (डी.आर.डी.ओ.) के वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम कर प्रक्षेपास्त्र बनाने की स्वदेशी तकनीकी विकसित की 100,200 500  … से आगे बढ़ते हुए आज हमने 5000 किमी तक मार करने की क्षमता वाले प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया है . जिन वैज्ञानिकों ने यह पराक्रम किया है, परिश्रम किया है वह सारे वैज्ञानिक बधाई एवं सम्मान के पात्र है, विदेशों से बिना एक पैसे की तकनीकी लिए हुए संपूर्ण स्वदेशी एवं भारतीय तकनीकी पद्दति से उन्होंने प्रक्षेपास्त्र बना कर विश्व के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया . महत्व की बात उनके बारे में यह है की वह सब यहीं जन्मे, यहीं पले-पढ़े, यहीं अनुसंधान (रिसर्च) किया एवं विश्व में भारत को शीर्ष पर स्थापित कर दिया .

श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, भारत में प्रक्षेपास्त्रों की जो परियोजना चली उसके पितामहः माने जाते है . श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी से जब एक दिवस पूछा गया  कि  आप इतने महान वैज्ञानिक बन गए, इतनी उन्नति आपने कर ली, आप इसमें सबसे बड़ा योगदान किसका मानते है, तो उन्होंने उत्तर दिया था कि  ” मेरी पढ़ाई मातृभाषा में हुई है अतः  मैं इतना ऊँचा वैज्ञानिक बन सका हूँ “, आपको ज्ञात होगा कलाम जी की १२ वीं तक की पढ़ाई तमिल में हुई है , उसके उपरांत उन्होंने थोड़ी बहुत अंग्रेजी सीख स्वयं को उसमें भी दक्ष बना लिया किंतु मूल भाषा उनकी पढ़ाई की तमिल रही . कलाम जी के अतिरिक्त इस परियोजना में जितने और भी वैज्ञानिक है उन सभी की मूल भाषा मलयालम, तमिल, तेलगु, कन्नड़, बांग्ला, हिंदी, मराठी, गुजराती आदि है अर्थात हमारी मातृभाषा में जो वैज्ञानिक पढ़ कर निकले उन्होंने स्वदेशी तकनीकी का विकास किया एवं देश को सम्मान दिलाया है . परमाणु  अस्त्र  निर्माण एवं परीक्षण  भी श्री होमी भाभा द्वारा स्वदेशी तकनीकी विकास के स्वप्न, उसको पूर्ण करने हेतु परिश्रम की ही देन है . अब तो हमने परमाणु अस्त्र निर्माण एवं परीक्षण  के अतिरिक्त उसे प्रक्षेपास्त्रों पर लगा कर अंतरिक्ष तक भेजने में एवं आवश्यकता पढ़ने पर उनके अंतरिक्ष में उपयोग की सिद्धि भी हमारे स्वदेशी वैज्ञानिकों ने अब प्राप्त कर ली है . यह भी संपूर्ण स्वदेशी के आग्रह पर हुआ है . अब तो हमने पानी के नीचे भी परमाणु के उपयोग की सिद्धि प्राप्त कर ली है ,संपूर्ण स्वदेशी तकनीकी से निर्मित अरिहंत नामक परमाणु पनडुब्बी इसका ज्वलंत प्रमाण है | जल में, थल में, अंतरिक्ष में हमने विकास किया | यह सारी विधा का प्रयोग स्वदेशी वैज्ञानिकों ने किया, स्वदेशी तकनीकी से किया, स्वदेशी आग्रह के आधार पर किया एवं स्वदेशी का गौरव को संपुर्ण विश्व में प्रतिष्ठापित किया | यह कार्य उच्च तकनीकी के होते है प्रक्षेपास्त्र, उपग्रह, परमाणु विस्फोटक पनडुब्बी, जलयान, जलपोत महा संगणक (सुपर कंप्यूटर) निर्माण आदि एवं इन सब क्षेत्रों में हम बहुत आगे बढ़ चुके है स्वदेशी के पथ पर | स्वदेशी के स्वाभिमान से ओत प्रोत भारत के महा संगणक यंत्र ” परम 1000 (super 1000) ” के निर्माण के जनक विजय भटकर (मूल पढ़ाई मराठी ) की कथा सभी भारतियों को ज्ञात है, उनके लिए प्रेरक है . इतने सारे उदाहरण देने के पीछे एक ही कारण है वह यह की भारत में तकनीकी का जितना  विकास हो रहा है वह सब स्वदेशी के बल से हो रहा है, स्वदेशी आग्रह से हो रहा, स्वदेशी गौरव एवं स्वदेशी अभिमान के साथ हो रहा है ..नवीन तकनीकी हमको कोई ला कर नहीं देने वाला, विदेशी देश हमे यदि देती है तो अपनी 20 वर्ष पुरानी तकनीकी जो उनके देश में अनुपयोगी, फैकने योग्य हो चुकी है . इसके उदाहरण है जैसे कीटनाशक, रसायनिक खाद निर्माण की तकनीकी स्वयं अमेरिका में बीस वर्ष पूर्व से जिन कीटनाशकों का उत्पादन एवं विक्रय बंद हो चुका है, एवं उनके कारखाने उनके यहाँ अनुपयोगी हो गए है . अमेरिका 142  विदेशी कंपनियों के इतने गहरे गहरे षड्यंत्र चल रहे है ,इन्हें समझना हम प्रारंभ करे अपनी आंखे खोले, कान खोले दिमाग खोले एवं इनसे लड़ने की तैयारी अपने जीवन में करे भारत स्वाभिमान इसी के लिए बनाया गया एक मंच है जो इन विदेशी कंपनियों की पूरे देश में पोल खोलता है एवं पूरे देश को इनसे लड़ने का सामर्थ्य उत्पन्न करता है , हमे इस बात का स्मरण रखना है की इतिहास में एक भूल हो गई थी जहांगीर नाम का एक राजा था उसने एक विदेशी कंपनी को अधिकार दे दिया था, इस देश में व्यापार करने का परिणाम यह हुआ की जिस कंपनी को जहांगीर ने बुलाया था उसी कंपनी ने जहांगीर को गद्दी से उतरवा दिया एवं वह कंपनी इस देश पर अधिकार कर लिया 06  लाख 32  सहस्त्र 781 क्रांतिकारियों ने अपने बलिदान से उन्हें भगाया था .
30 नवम्बर को उनकी जयंती तथा पुण्य तिथि पर उनको सच्ची  श्रद्धांजली यही हो सकती है कि हम मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति और सभ्यता के महत्व को समझें ,उस पर गर्व करें तथा समाविष्ट विकृतियों को दूर करते हुए भारत को पुनः विश्व गुरु के पद पर आसीन करें.अपनी भाषा हिंदी को अपनाएँ,तथा मैकाले के षड्यंत्र को समझें और विदेशी मकडजाल से मुक्त हों ,भ्रष्टाचारमुक्त भारत का निर्माण हो तथा .सम्पूर्ण भारत में यही दृश्य हो
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(राजीव जी  से सम्बन्धित समस्त जानकारी नेट पर उपलब्ध है., नेट से  तथा पुस्तकों से ही ली गई है  एक विनम्र आग्रह कि इस विचारधारा को किसी  व्यक्ति विशेष  या पार्टी विशेष से न जोड़ते हुए देश  हित के दृष्टिकोण से विचार  करें )

साभार
 http://nishamittal.jagranjunction.com/2012/11/28/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5-%E0%A4%A6/